मेरा बचपन का शमां}
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वो भी क्या दिन थे,
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जब मम्मी का प्यार. और पापा का कन्धा,
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ना पैसोँ की सोच,
ना फतुर के सपने,
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न कल की चिन्ता,
ना जिन्दगी के कुन्दे,
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पर अब कल की है चिन्ता,
और अधुरे है सपने,
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सपनोँ को ढुन्डते-ढुन्डते
कहाँ आ कये हम,
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आखिर......
इतने बडे क्युँ हे कये हम..!
humne chalte hue unse poocha ki ek pal mai jan kaise niklti hai aur usne ek pal mai mera hath chor diya
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